शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

साधक साधन साधिये # २ ५ ५

हनुमत कृपा
अनुभव  
                                                 साधक साधन साधिये
                                   साधन - "नाम जपते रहो काम करते रहो" 

प्रियजन !संत रैदास जी की संतत्व प्राप्ति की "साधना" जिस एकमात्र सूत्र से बंधी थी वह था उनका "काम  करता रहूँ , नाम जपता रहूँ"  वाला सिद्ध यंत्र  ! इसके अतिरिक्त किसी और साधन का उपयोग उनके जीवन में कहीं दृष्टिगत नहीं होता ! वह प्रातः से रात्रि तक अपने ठीहे पर बैठे जूते सिलते गांठते ,फर्मे पर चढाते उतारते ,उनपर मोम और रंग का मिश्रण  घिसकर उन्हें चमकाते और काशी के अपने साधू साहूकार ग्राहकों को प्रसन्न कर के अपनी आजीविका कमाते थे ! बड़े से बड़े गंगा स्नान के पर्व पर भी वह गंगा स्नान करने नहीं जाते थे , काशी विश्वनाथ मंदिर के द्वार तक भी वह कभी नहीं गये ! हाथ में माला लिए जाप करते करते ग्राहकों से बात करते हुए अथवा आँख मूंदे ,योगासन में बैठ कर ध्यान लगाते हुए भी किसी ने उन्हें कभी नहीं देखा !और आप यह तो जानते ही होंगे कि उनके आसन तले गंगा मैया स्वयं प्रगट हुईं !

संत रैदास जी के द्वारा सिद्ध किया भगवत कृपा प्राप्ति का यह सरल साधन क्या ह्म नहीं अपना सकते ?

मेरे अतिशय प्रिय पाठक गण ,आज नए वर्ष -"२०११" का पहला दिन है ! चलिए आज के दिन ह्म एक संकल्प करें कि ह्म ,और कोई साधन न कर पायें तो ,कम से कम ,आज से ही रैदासजी का "काम करता रहूँ , नाम जपता रहूँ " वाला साधन करना तो शुरू ही कर दें ! हमे पूरा भरोसा है क़ि इस सरल-साधारण-साधन से प्रसन्न होकर ह्मारे प्रियतम प्रभु ह्म पर भी अपनी  कृपा दृष्टि अवश्य डालेंगे और हमारा भी कल्याण सुनिश्चित हो जायेगा ! 

So, once again, wishing  a VERY VERY HAPPY NEW YEAR to all of you and 
Praying that we are blessed with wisdom to "WORSHIP while WORKING" 

very sincerely ,
V. N. SHRIVASTAV "BHOLA" 
78, Clinton Road, Brookline. MA 02445 ,(USA)


गुरुवार, 30 दिसंबर 2010

साधक साधन साधिये # २ ५ ४

हनुमत कृपा 
अनुभव                                         
                                        साधक साधन साधिये
                                           (अंक २५२ के आगे)                        

गतांक में हम विचार कर रहे थे क़ि "राम कृपा" प्राप्त करने के लिए ह्म साधकों को कौन कौन से साधन करने चाहिए !  इस बीच अमेरिका के बर्फीले तूफ़ान ने हमारी मति भ्रमित कर दी और यहाँ का सारा माहौल इतना बर्फीला हो गया क़ि      

जम  गई   मम  ज्ञान-गंगा  ,थम गया मति  का प्रवाह !
कंठ में अटकी हमारी बात, कह पाया ,न थी जो चाह !!(भोला) 

प्रियजन , जो भी हुआ "उनकी" कृपा से हुआ ,जो होग़ा "उनकी" इच्छानुसार होग़ा और उसमे हमारा कल्याण निहित होग़ा ! यह विश्वास सुदृढ़ रखना है !चलिए आगे बढ़ें :

अंक २५२ में , ह्म पहले साधन -" प्रभु से प्रीति "करने  की बात कर रहे थे ! भक्ति के सरलतम साधन "सुमिरन ध्यान जाप भजन कीर्तन" से सुफल प्राप्ति के लिए सर्वोपरि जरूरत  है "प्रीति" की - साधक की साध्य से प्रबल लगाव की ! महापुरुषों ने सच्चे साधक को सर्व प्रथम अपने "प्रियतम " को पहचानने की सलाह दी है ! कठिन नहीं है , कोशिश करें ! सोंच कर देखें , कौन है वह  जो हमें  इतना प्यार करता है क़ि  हर पल ह्मारे ऊपर अपनी कृपा की अमृत वर्षा कर रहा  है ? वह कौन है जो मजबूत ढाल बन कर ,कवच बन कर जीवन समर में शत्रुओं से हमारी रक्षा कर रहा है ?  वह कौन है जो गिरने से पहले हमारा हाथ थाम कर हमे सम्हाल लेता है ? कौनहै जो हमें  हर संकट से उबार लेता है ? प्रियजन, आप ही कहें ,उस "परम दयालु- कृपा निधान " के अतिरिक्त ह्म और किस से प्रीति करें ? 

हाँ इस प्रकार विचार करते करते जब प्रियतम की पहचान हो जाती है तब उन्हें रिझाने के लिए ह्म सोचते हैं क़ि किसी प्रकार प्रभु से हमारी प्रीति ,"चन्दन और पानी", "सोना और सुहागा" ,"मोती और धागा" तथा "स्वामी और सेवक " की प्रीति जैसी  गहरी हो जाये   ! गुरुजन से  मार्ग दर्शन मिल जाने के बाद , उनके दिखाए पथ पर चल कर ह्म जैसे साधक  भक्त रैदास के समान ही प्रभु का नाम सिमरन ,भजन ,कीर्तन करते हैं ,पूरे विश्वास और लगन से ! 

अब कैसे छूटे नाम रट लागी 
प्रभुजी तुम दीपक ह्म बाती ,    जाकी जोती जरे  दिन राती  !!
प्रभुजी तुम चन्दन ह्म पानी , जाकी अंग अंग बास समानी !!
प्रभुजी तुम मोती ह्म   धागा ,    जैसे सोंनहि मिलत सुहागा !!
प्रभुजी तुम घन बन ह्म मोरा ,   जैसे  निरखत चन्द चकोरा !!
प्रभुजी तुम स्वामी  ह्म  दासा ,   ऎसी  भगति  करत  रैदासा !!

प्रियजन मेरे जीवन पर "रैदास जी" की जीवनी और उनके इस अनमोल कथन का बचपन में ही बड़ा प्रभाव पड़ा था ! पहले दादी और फिर अम्मा ने बार बार रैदास का यह "पद"सुना कर शैशव में ही मेरा ध्यान रैदासजी के समान  नाम सिमरन के उस छोर की ओर मोड़ दिया ,जहाँ नाम और नामी एक दूसरे से सदा सदा के लिए अभिन्न हो जाते हैं१


संत रैदासजी अपनी रोज़ी रोटी के लिए चर्मकार का कार्य करते हुए , मन ही मन अपने "प्रभुजी" का सिमरन ,नाम जाप करते थे और उस बीच अपने नये शब्दों के बोल भी गुन  गुनाते रहते थे ! शैशव में  दादी-अम्मा से सुनी रैदासजी की कहानी के कारण ,बड़े होने पर मेरे जीवन में क्या क्या हुआ ,सुनिए !


प्रियजन ! आत्मकथा के पिछले अंकों में बता चुका हूँ क़ि किस प्रकार आयल टेक्नोलोजी में ग्रेजुएट हो जाने के बाद (जिसमे मैंने कोस्मेटिक प्रोडक्ट बनाने में इस्पेसलाइज़ किया था ) मुझे आजीवन लेदर टेक्नोलोजिस्त का काम करना पड़ा ! जानवरों की कच्ची खाल को पका कर चमडा बनाने का काम ही "मेरे राम" ने मेरी आजीविका के लिए नियत किया था ! यह सोंच कर मैंने उस कर्म को सहर्ष स्वीकार कर लिया ! मेरा काम तो  रैदास जी के जूते बनाने वाले काम से कहीं अधिक ओछा था लेकिन मैं उसे जीवन भर  "राम-आज्ञा" मान कर उसका पालन करता रहा बिना उफ़ किये या आहें भरे !! 


यहाँ यह भी बता दूं क़ि "प्रभु इच्छा" मान कर ,जीवन भर चमड़े का काम करने के कारण मैं अपने जीवन में पल भर को भी दुख़ी नहीं हुआ ! मैंने "उनकी" आज्ञा का पालन किया और "उनकी" कृपा देखिये "उनका" वरद हस्त मेरे माथे पर सदा सर्वदा बना रहा !अपने पेशे में मैं एक साधारण अप्रेंटिश के पद से केवल "उनकी" कृपा से ,भारत सरकार के सबसे बड़े चमड़े के कारखाने का सी.एम.डी (अधीक्षक) एवं एक विदेशी सरकार का औद्योगिक सलाहकार  नियुक्त हुआ ! क्या मैं कभी भी प्रभु की इस असीम कृपा के ऋण से उरिण हो पाउँगा ? मैंने अपनी एक रचना में प्रभु से पूछा है :


कहो उरिण कैसे हो पाऊं ,  किस मुद्रा में मोल चुकाऊं ?
केवल तेरी महिमा गाऊं , और मुझे कुछ भी ना आता !! 
दाता राम दिए ही जाता - भिक्षुक मन पर नहीं अघाता !!


प्रियजन जैसे ही उत्तर मिलेगा आपको बताऊंगा ! फ़िलहाल राम राम स्वीकार करें !
क्रमशः 
HAPPY NEW YEAR  
निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"






   

बुधवार, 29 दिसंबर 2010

साधक साधन साधिये # २ ५ ३

हनुमत कृपा 
अनुभव
                                            साधक साधन साधिये


प्रियजन पिछले ३-४ दिनों में  विश्व के मौसम में अप्रत्याशित बदलाव हुए ! सुनने में आया क़ि भारत के उत्तर में डल झील जम गयी , दिल्ली और आसपास का तापमान शून्य के काफी निकट आ गया और भारी कोहरे के कारण हवाई और रेल यात्रा दो तीन  दिनों के लिए करीब करीब ठप्प ही हो गयी !


यहाँ की न पूछिए , उत्तर पूर्वी यू.एस. ए. क्रिसमस के बाद से बिल्कुल जमा पड़ा है ! २६ , दिसम्बर की रात भर भयंकर बर्फबारी हुई !तेज़ हवाएं चलीं ! सरकार नें कहीं कहीं आपात कालीन आदेश जारी कर दिए ! लोगों  को घर से बाहर न निकलने और खुले में सडकों पर कम से कम आने का अनुरोध किया गया !  दफ्तर के काम घर से ही निपटाने की सलाह दी गयी ! यहाँ के भी ,सभी हवाई अड्डे बंद हो गये ,विमानों की आवाजाही रुक गयी !


ह्मारे नगर ब्रूकलाइन में चारों तरफ १८ से २४ इंच मोटी बर्फ की तह जमी पड़ी है!गनीमत यह है क़ि स्थानीय सरकारे थोड़ी थोड़ी देर में "स्क्रेपर्स"से यहाँ के रास्तों की बर्फ खुरचकर साफ़ करती रहती है ! बर्फ की सफेद चादर पर यहाँ की सडकें परमानेंट मारकर से खीचीं काली लकीरों सी चमकती हैं ! फिर भी बिना आवश्यकता के बाहर निकल पाना कठिन है , क्योंकि बाहर का तापमान दिन भर शून्य से  नीचे रहता है ,हालां क़ि सुबह से ही यहाँ चारोँ ओर चिलचिलाती धूप खिली रहती है !


ये सब क्यों लिख रहा हूँ ,प्रियजन ! इस लिए क़ि इन बर्फीले दिनों में जहाँ एक तरफ मेरे  मस्तिष्क की रोश्नायी बिल्कुल जम गयी ,वहीं मेरे कम्प्यूटर जी ने भी बापू गांधी जी सा असहयोग आन्दोलन छेड़ दिया था ,यही नहीं , यहाँ का  इंटरनेट कनेक्शन भी ज़ोरदार बर्फीली हवा के झोकों के कारण खुल गया था और मुझे तो ऐसा लग रहा था जैसे मेरे हाथ पैर ही कट गये थे  ! चलिए आज ये तकनीकी खराबियां सुधर गयीं ,लेकिन---इष्टदेव श्री हनुमान जी भी इन बर्फीले दिनों में मुझसे कुछ बोल नहीं रहे हैं ! कोई निर्देश, कोई प्रेरणा ,कोई विचार उनकी तरफ से नहीं मिल रहा है ! प्रियजन ,प्रार्थना करिए क़ि वह मुझ पर पुनः कृपा करें ,मुझे सुबुद्धि प्रदान करें क़ि मैं शीघ्रताशीघ्र ,आपकी सेवा चालू कर दूं ! 


आज यहीं समाप्त करता हूँ , कल फिर मिलूँगा ( वह कृपा करेंगे ही )


निवेदक :- व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
78, Clinton Road ,Brookline . MA 02445 (USA)


   

सोमवार, 27 दिसंबर 2010

साधक साधन साधिये # 2 5 2

हनुमत कृपा 
अनुभव 
                                    
साधक साधन साधिये - साधन (३) 
"भक्ति"
तुलसीकृत रामचरितमानस में  त्रेतायुग के श्री राम की वाणी में नवधा भक्ति के जिन नौ साधनों का उल्लेख किया है वही नौ लक्षण श्रीभागवत पुराण में भक्त शिरोमणि प्रह्लाद ने अपने सहपाठी दैत्य बालकों को तथा अपने पिता दैत्यराज हिरन्यकशिपू को बताये थे ! प्रहलाद जी ने उनसे कहा कि" भगवान  को वे व्यक्ति प्रिय हैं जो अतिशय प्रीति सहित भगवान के गुण-लीला और  नाम का श्रवण, कीर्तन और उनके रूप नाम आदि का स्मरण और उनके चरणों क़ी सेवा ,पूजा -अर्चा ,वन्दन,दास्य,सख्य और आत्म निवेदन आदि उनके प्रति पूर्ण समर्पण के भाव से करते है"(श्रीमद भागवत-स्कन्ध.- ७, श्लोक.२३,२४ )


भागवतपुराण में ही कपिल मुनि ने अपनी मां  देवहुति के इस प्रश्न पर कि ," भगवन ! आपकी समुचित भक्ति का स्वरूप क्या है ? "(अध्. २५, श्लो. २८) , कपिल भगवान ने  उन्हें बताया क़ि :."निष्काम भाव से श्रद्धापूर्वक अपने नित्य -नैमित्तिक कर्म का पालन करके , इष्टदेव  की  प्रतिमा का दर्शन ,स्पर्श ,स्तुति और वन्दना करना ,सभी प्राणियों में उन इष्टदेव का दर्षन और उनकी ही भावना करना, महापुरुषों का संग और सत्संग करना ,दीनों पर दया और मित्रता का व्यवहार करना ,अध्यात्म शास्त्रों का श्रवण और प्रभु के  नाम का उच्च स्वर से कीर्तन करना तथा अहम त्याग कर अतिशय प्रीति सहित पूर्ण समर्पण करने से अनायास ही साधक परमात्मा को पा जाता है "!(स्कन्ध ३ ,अध्याय  २९ ,श्लोक १५-१९ )  


भगवान कपिल ने यह भी कहा क़ि भगवत्प्राप्ति के लिए सर्वात्मा श्रीहरी के प्रति की हुई प्रगाढ़ प्रीति (भक्ति) के समान और कोई सरल और  मंगलमय मार्ग नहीं है ! (स्कन्ध ३, अध्याय २५ ,श्लोक १९ )       


इस प्रकार प्रियजन ! हमने  देखा  कि  वैदिक काल  से वर्तमान काल तक के  हमारे सभी  अभिनंदनीय धर्मग्रंथ आध्यात्मिक जीवन में"भक्ति" के उपरोक्त नौ  लक्षणों को  ही "प्रभु-कृपा अवतरण" की सिद्धि का सरलतम साधन बताते है !  और आपने यह भी देखा क़ि हम जैसे आलसी और काहिल व्यक्तियों के लिए हमारे कृपा सिन्धु - करुना-निधान श्री राम जी ने कितनी सुविधा दे दी ! अपनी प्रिय भामिनी शबरी की कुटिया में उन्होंने यह   उद्घोषणा कर दी क़ि " तुम यदि इन ९ साधनों में से केवल एक ही कर पाओगे तो भी मैं तुम्हारा उद्धार कर दूंगा "! कितना आसान कर दिया है उन्होंने उन तक पहुँचने का हमारा मार्ग ? फिर भी हम यदि उनके " अतिसय प्रिय " न बन सकें तो दोष हमारा है ,उनका या किसी अन्य का नहीं ! अस्तु हमे उनके प्रति "सकल प्रकार भगति दृढ़ " करनी है , उनसे अतिशय प्रीति करनी है ! अस्तु प्रियजन , अब देर मत करो !

१९६४- ६५ में बड़े भैया ने आकाश वाणी भोपाल से एक आधुनिक भजन गाया था , हाल में अनिल बेटा ने सिंगापूर से हमे उसकी याद दिलायी , आप देखें कितना सटीक बैठता है वह कितना प्रासंगिक है वह हमारे आज के संदेश के लिए :


  रे मन प्रभु से प्रीति करो
प्रभु  की   प्रेम   भक्ति  श्रद्धा  से  अपना  आप  भरो!! 
रे मन प्रभु से प्रीति करो 
ऎसी प्रीति करो तुम प्रभु से , प्रभु  तुम माहि समायें !
बने  आरती  पूजा   जीवन ,  रसना  हरि  गुन  गाये !
एक  नाम  आधार  लिए  तुम , इस  जग  में बिचरो !!
                                                रे मन प्रभु से प्रीति करो            
गुरुदेव स्वामी सत्यानन्द जी महाराज ने भी कहा है :

"प्रीति  करो   भगवान  से , मत  मांगो  फल  दाम
    तज कर फल की कामना करिये भक्ति निष्काम !!


क्रमशः 
निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"

शनिवार, 25 दिसंबर 2010

साधक साधन साधिये # २ ५ १

हनुमत कृपा 
अनुभव              
                                              साधक साधन साधिये   
                                                       साधन (३)

"ज्ञान कर्म और भक्ति" इन तीनों साधनों में से हमारे सभी आदि ग्रन्थ "भक्ति" को ही प्रभु कृपा प्राप्ति का सर्वश्रेष्ट और सरलतम साधन बताते हैं ! तुलसी कृत मानस के एक प्रसंग में लक्ष्मण ने श्री राम से एक प्रश्न किया :-
सुर नर  मुनि   सचराचर साई ! मैं   पूछहूं  निज प्रभु की नाई !!
मोहि समझाई कहहु सोई देवा !सब तज कारों चरण रज सेवा !!
कहहू ज्ञान बिराग अरु माया ! कहहु सो भगति करहु जो दाया !!  
( Lakshman enquires from Sri Ram : " O Lord of the entire creation , I ask You as of my own master . Instruct me my Lord , how I may be able to worship YOU . Discourse to me my Lord on spiritual wisdom and also tell me what is True Devotion for I know ,it is due to Devotion  that YOU shower your grace on the seekers .)


भाई लक्ष्मण को उत्तर देते हुए श्री राम ने भी भक्ति को ही सर्वोच्च साधन कहा :


धर्म ते   बिरति जोग ते ग्याना   ! ज्ञान मोच्छप्रद बेद बखाना !!

 जाते  बेगि  द्रवऊं   मैं   भाई  ! सो मम भगति भगत  सुखदाई !!

भगति तात अनुपम   सुखमूला ! मिलहि जो संत होईं अनुकूला !!

भगति क़ि साधन कहहूं बखानी ! सुगम पन्थ मोहि पावहि प्रानी !!

(Responding to his brpther ,Sri Ram says :"And that which melts MY heart quickly

dear brother is DEVOTION which is the delight of MY devotees. Devotion ,dear 

brother is incomparable and the very root of BLISS . It can be acquired only by the 

favour of saints (GURU). Now I shall tell you how to acquire this DEVOTION - 

the easiest way for a devotee to reach ME" )


अब  सवाल उठता है क़ि "भक्ति" क्या है ?

मानस  में ही श्री राम ने सबरी को नवधा भक्ति के नौ लक्षण बताये 
  1. प्रथम भगति संतन कर संगा !
  2. दूसरी रति   हरि  कथा प्रसंगा !!
  3. गुरु     पद     पंकज     सेवा      तीसरि        भगति     अमान !!
  4. चौथि भगति मम  गुन गन       करहिं      कपट   तजि   गान !!
  5. मन्त्र जाप   मम दृढ़  बिस्वासा   पंचम भजन सो  बेद प्रकासा !!
  6. छठ दम सील बिरति बहु करमा, निरत निरंतर सज्जन धरमा !!
  7. सातवं सम मोहि मय जग देखा, मोतें   संत अधिक कर  लेखा !! 
  8. आठव  जथा  लाभ   संतोशा   सपनहूँ  नहीं     देखई  पर दोशा !!
  9. नवम सरल सब सन छल हीना ,मम भरोस हियँ हरष न दीना !! 
और अंत में श्री राम ने यहाँ तक कह दिया क़ि :


            नव महु एकहु जिनके होई नारि पुरुष सचराचर कोई 


                        सोइ अतिसय प्रिय भामिनि मोरें   


इन नौ भक्ति के लक्षणों मे से यदि केवल एक भी लक्षण किसी साधक में हो तो वह मुझे 


अतिशय प्रिय है 


The Computer is misbehaving hence I close the BLOG here. See you again 


tomorrow . Meanwhile 


MERRY CHRISTMAS & SEASONS GREETINGS MAY GOD BLESS YOU   


nivedak:  V. N. SHRIVASTAV "BHOLA" 



शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

साधक साधन साधिये # २ ५ ०

हनुमत कृपा 
अनुभव               
                                             साधक साधन साधिये 
                                                  साधन (२)


श्रीभगवानुवाच - 

                               "नाहं वेदैर्न तपसा न दानेन न चेजज्या" 
                                              (गीता अध्याय ११, श्लोक ५३)
कुरुक्षेत्र में अर्जुन को अपना दिव्य स्वरूप दिखाकर श्री कृष्ण ने उनसे कहा क़ि " बड़े बड़े तपस्वियों , दानियों, ज्ञानियों और यज्ञ करनेवालों को भी मेरा यह दर्शन दुर्लभ है ! वेद, तप, दान और यज्ञ से मेंरी (ईश्वर-प्रभु की ) प्राप्ति नहीं हो सकती"!                                                          


प्रश्न उठता है क़ि फिर कौन से वे साधन हैं जिन्हें अपना कर जीव सरलता से अपना, अभीष्ट पा सकता है ? गीता में ही इस शंका का समाधान करते हुए श्रीकृष्ण ने अन्यत्र कहा है ! 
श्रीभगवानुवाच --
मन्मना  भव  मद्भक्तो  मद्याजी  मां नमस्कुरु !
मामेवैश्य सि सत्यम ते प्रतिजाने प्रियोअसि मे !! (गीता -अध्.१८ -श्लोक ६५ ) 
श्रीमदभगवत गीता के उपरोक्त श्लोक में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को ईश्वर प्राप्ति के साधन बताते हुए कहा :-
"मन लगा  मुझमे , भजन कर, वंदना कर ,भक्त बन! 
             एक हो जायेंगे ह्म तुम, प्रिय सखा , मैं कर रहा प्रन !! (भोला)        
हे अर्जुन ! मुझमें अपने मन को स्थिर कर , मेरा भक्त बन , भजन और वन्दना कर !  ऐसा कर के तू अवश्य ही मुझे पा जायेगा , मुझमे मिल जायेगा ! मैं प्रण करके कहता हूँ क्योंक़ि तू मुझे अतिशय प्रिय है !)


इस प्रकार श्रीकृष्ण ने अपने प्रिय सखा अर्जुन को भगवत कृपा प्राप्ति के तीन प्रमुख साधन बताये   (१) ध्यान,(२) अर्चन, (३) नाम संकीर्तन .


श्रीमदभागवत पुराण के षष्ठ स्कंध में श्री वेदव्यास नें भी साधकों के लिए "हरि कृपा प्राप्ति " के विविध साधन बताते हुए कहा है क़ि इस जगत में जीवों के लिए यही सबसे बड़ा कर्तव्य है  क़ि वे नाम कीर्तन, अर्चन और ध्यान  आदि उपायों से भगवान के चरणों में भक्तिभाव प्राप्त करें ,यही परमधर्म भी है !

क्रमशः 
निवेदक : व्ही एन श्रीवास्तव 'भोला' 

गुरुवार, 23 दिसंबर 2010

साधक साधन साधिये # २ ४ ९

हनुमत कृपा 
अनुभव                                       
                                               "साधक साधन साधिये"  
                                                         "साधन"

अपने गंतव्य तक पहुंचने  के लिए एक साधक को 
  जो साधना करनी होती है 
    उसे ही "साधन" कहते हैं !

गुरुदेव ब्रह्मलीन स्वामी सत्यानन्द जी महराज ने लगभग ६५ वर्ष तक विभिन्न भारतीय धर्म-शास्त्रों का गहन अध्ययन और अनुसरण करने  के उपरांत भी अपने "इष्ट" का दर्शन न कर पाने पर सन १९२५ में अपनी  आंतरिक प्रेरणा से ,परम शांति  एवं परमानंद की प्राप्ति के लिए हिमांचल के डलहौजी नामक स्थान के एकांतवास में  कुछ काल तक अनवरत साधना की !
 इस तपश्चर्या  के फलस्वरूप उनके अंत:करण  में "राम कृपा का अवतरण" हुआ!उनके सन्मुख एक ज्योति प्रगट हुई और एक दिव्य ध्वनि में "राम" शब्द निनादित हुआ! महाराज जी को "सर्वशक्तिमान परमात्मा" के "परम सत्य ज्योतिर्मय स्वरूप"का  दर्शन हुआ और उन्होंने  उस "परम अस्तित्व" के दिव्य "ब्रह्मनाद" के श्रवण का आनन्द भी लिया |

डलहौज़ी में वहाँ के जानकार महापुरुषों से हमने स्वयं सुना है क़ी उस "ब्रह्मनाद" एवं "दिव्य ज्योति" की स्वानुभूति से  स्वामी जी महराज का अन्तरमन अखंडानंद से भर गया और वह महाप्रभु चैतन्य के समान आकाश क़ी ओर दोनों बांह उठाये मतवाली मीरा के समान नृत्य करने लगे ! यही नहीं उन्होंने वहीं पास में भौचक्के खड़े एक प्रत्यक्ष दर्शी को खींच कर अपने गले लगा लिया और बड़ी देर तक उसके साथ,हाथ में हाथ डाले कीर्तन गाते रहे और नृत्य करते रहे !

उस समय का हिन्दू समाज मत-मतान्तरों के विवादों एवं विभाजनकारी मतभेदों के जाल में  बुरी तरह उलझा हुआ था ! "परम कृपा स्वरूप परमात्मा" के आदेशानुसार  स्वामीजी ने  उस "ब्रह्मनाद" से प्रेरित होकर बिखरते हुए भ्रमित जन मानस का मार्गदर्शन  करने का बीड़ा उठा लिया ! महाराज जी ने तभी से जन जन को "राम नाम महामंत्र"  का दान देने का संकल्प  कर लिया !


साधकों को  नाम दान देते समय आज भी गुरुजन ,स्वामी जी महराज द्वारा स्थापित परिपाटी का अनुसरण करते हुए,नये साधकों को साधना क़ी "वह विधि"-वह "साधन" सविस्तार बताते हैं जिसके द्वारा उनके हृदय में भी  "राम कृपा-अवतरण " हो और अखंड आनन्द प्रवाहित हो |


इस विशिष्ट "साधन" पर और अधिक प्रकाश मैं अपनी  क्षमता के अनुसार अगले संदेशों में डालूँगा ! अभी हमारी आज की राम राम स्वीकार करें ! कल फिर भेंट होगी ही !


निवेदक :- व्ही, एन, श्रीवास्तव "भोला"
78, Clinton Road, Brookline , (MA 02445,USA)  

बुधवार, 22 दिसंबर 2010

"साधक साधन साधिये" # २ ४ ८ -

हनुमत कृपा 
अनुभव 


"साधक साधन साधिये"
"साधक कौन"  

प्रियजन ! श्री स्वामी सत्यानन्द जी महराज की यह स्नेहिल मन्त्रणा, यह अधिकार पूर्ण आदेश ,उन सभी  "नामोपासक साधकों" के लिए है जिन्होंने श्रीस्वामीजी से अथवा उनसे अधिकार प्राप्त "श्री राम शरणम" के अन्य गुरुजनों से "नाम" दीक्षा ली है ! चलिए अब ह्म स्वामीजी महराज के निकटस्थ महापुरुषों के विचारों के द्वारा यह जानने का प्रयास करें क़ि वास्तविक "साधक" है कौन ?
  • "साधक" शब्द का अर्थ है ,वह व्यक्ति जो साधना करता है !
  • "साधक" वह है ,जो अपने लक्ष्य -"साध्य " को भली भांति जानता है और जिसने गुरुजन से प्राप्त ज्ञान के आधार पर उस "साध्य " तक पहुंचनें का मार्ग अर्थात        अपना "साधना पथ" सुनिश्चित कर लिया है !
  • "साधक" वह है जिसने साधना के लिए प्रभु से मिली सब सुविधाओं में प्रमुख अपने शरीर ( जिसे तुलसी ने "साधन धाम मुक्ति कर द्वारा "  कहा है) ,के  वास्तविक  स्वरूप को  जान लिया है !
  • "साधक " वह है जो, अपने "इष्ट "- साध्य ,के अतिरिक्त अन्य किसी को जानता ही नहीं !
  • "साधक" वह है जो,  तन, मन, धन से पूर्णतः अपने साध्य पर समर्पित है ! 
  • "साधक" ऐसा हो जो अपने " साध्य "से ,अपने इष्ट से इतना अभिन्न हो जाये जैसे " पुष्पों में सुवास""            
  • "साधक" वह है जिसने उसी श्रद्धा से अपने इष्ट को अपने हृदय में बसाया है जितनी श्रद्धा से मन्दिरों में मूर्ति की स्थापना होती है !
  • "साधक" वह है जो चलते फिरते उठते बैठते ,सोते जगते अपने नित्य के सभी काम काज  करते हुए पल भर को भी अपने इष्ट का चिन्तन न छोड़े  ठीक वैसे ही जैसे एक "माँ" पालने में पड़ी अपनी संतान को क्षण भर को भी नहीं  भूलती है , चाहे वह जहाँ भी हो  और चाहे वह जो भी काम कर रही हो !
  • साधक वह है जिसे पक्का विश्वास हो कि उसका इष्ट अथवा उस इष्ट का "नाम", उसके हृदय में सर्वदा विद्यमान है ! 
  • साधक का  "मन" ,उसके "इष्ट" के सिंहासन जैसा हो ,जिसे वह सर्वदा पवित्र रखे !  निर्मल मन में ही साधक के इष्ट का निवास हो सकता है ! गोस्वामी तुलसीदस जी के शब्दों में ,भगवान श्री राम का यह कथन ,इस सूत्र की पुष्टि करता  है -
  • "निर्मल मन जन सो मोहि पावा , मोहि  कपट छल छिद्र  न  भावा "

प्रियजन वैसे तो यह सम्पूर्ण जीव जगत ह़ी साधक है !,प्रत्येक जीव अपने  किसी न किसी  अभीष्ट की प्राप्ति के लिए कोई न कोई "साधना" कर रहा है ! मैंने इस संदेश में केवल उन साधकों को सम्बोधित किया है जो आध्यात्मिक प्रगति के लिए साधनरत हैं ! ऐसे साधकों को उद्देश्य प्राप्ति के लिए क्या क्या "साधन" करने होंगे ,अगले अंक में उसकी बात करेंगे! फिलहाल हमारी अभी की राम राम स्वीकारें !

निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"

मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

साधक साधन साधिये # २ ४ ७

हनुमत कृपा 
अनुभव 

साधक  साधन  साधिये समझ सकल सुख सार !
वाचक  वाच्य   एक  है   , निश्चित  धार  विचार !!
( श्री स्वामी सत्यानन्द जी की अमृतवाणी के राम कृपा अवतरण प्रकरण से )


प्रियजन, पिछले अंकों में जब,मैं इधर उधर के निरर्थक वाद-विवाद में व्यस्त था किसी ने टोक दिया ,और एक बार फिर मुझे ,वह शेर ,अचानक ही याद आगया  -


टोक  देता  है  मुझे  जबभि   भूल करता हूँ 
ऐसा लगता  है कोई मुझसे बड़ा है  मुझमे !!
अब तो ये मानना होग़ा कि खुदा है मुझमे !!


कौन है वह "खुदा" जो अज्ञान के गहन अंधकार से अंगुली पकड़ कर हमे बाहर निकालता है , हमारा उचित मार्ग दर्शन करता है और अन्तोगत्वा ,हमारी हर गलती पर टोक कर हमे सुधरने की प्रेरणा देता है ? प्रियजन! वह उस साक्षात् परब्रह्म सद्गुरु के सिवाय और  कौन हो सकता है ! 
अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया ।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
Salutation to the noble Guru, who has opened the eyes blinded by darkness of ignorance with the collyrium-stick of knowledge.


किसी ने कितना सच कहा है "गुरु बिन भवनिधि तरे न कोई ,लाख जतन ----"और हमारा कितना सौभाग्य है क़ि हमे

भ्रम  भूल में भटकते उदय हुए जब भाग ,
मिला अचानक गुरु मुझे लगी लगन की जाग !!

हमे टोकने वाले और कुकर्मों से रोकने वाले ह्मारे प्यारे सद्गुरु ,ह्मारे सौभाग्य से ,सही समय में ही हमें मिल गये !उन्होंने  अपनी "अमृतवाणी" के द्वारा  हमे संदेश दिया ,क़ि मिथ्या के वाद -विवाद में न पड़ कर ह्म सद्गुरु द्वारा निर्धारित "साधना" करते रहें ! एक "नाम आराधन" के द्वारा ह़ी ह्म साधकों का कल्याण सुनिश्चित है !  

" साधक साधन साधिये   ....राम नाम  आराधिये "

क्रमशः
निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला" 

सोमवार, 20 दिसंबर 2010

साधक साधन साधिये# 2 4 6

हनुमत कृपा
अनुभव

प्रियजन ! मैंने तो अपने इष्ट देव श्री राम जी एवं श्री कृष्ण जी के चरित्र पर अमेरिका के छात्रों द्वारा उठाई शंकाओं के समाधान का प्रकरण समाप्त ही कर दिया था क़ि आज अपने राम परिवार के दो अतिशय प्रिय सदस्यों के भावपूर्ण पत्र (इ.मेल) हमे मिले ! इन दोनों का पूरा परिवार सद्गुरु श्री स्वामी सत्यानन्द जी महराज का परम भक्त है और इनके परिवार के सभी सदस्य श्री स्वामीजी, श्री प्रेम जी, श्री विस्वमित्र जी महराज,पिताश्री हंसराज जी ,माँ श्रीमती शकुन्तला जी अथवा दर्शी बहेन जी से "राम - नाम" दीक्षा प्राप्त कर चुके हैं !

मेल पढ़ कर ,कृष्णा जी एवं श्री देवी (जो आजकल चेन्नयी से यहाँ आयी हुई हैं ) ने सलाह दी क़ि मैं , इन प्रियजनों के विचारों से भी सभी पाठकों को अवगत करा दूँ , अस्तु दोनों पत्रों को ज्यों का त्यों नीचे उध्रत कर रहा हूँ :--
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पहला पत्र सिंगापुर से अनिल बेटे का है , उन्होंने लिखा है कि :-
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Saadar Charan Spursh!
Jai Sita Ram!
We returned from India last night. During last nine days, we did not access the internet and so could not read your messages. If you permit, I would like to add that:

1) In Shri Ramcharit Manas , Bhagwan Shri Ram has himself said that
अनुजवधू भगिनी सुत नारी ! सुनु शठ कन्या सम ए चारी !!
इन्ह्ही कुदृष्टि बिलोकइ जोई ! ताहि बधे कछु पाप न होई !!
Hence killing of Bali was justified. Yes in the Western world their moral Values are VERY different and hence they probably will not understand what the relations in INDIA mean.

2) Babuji had once mentioned that the 16,000 Ranian of Shri Krishna Bhagwan are symbolic to 16,000 veins of the Human Body. It is only PARMATMA Shri KRISHNA who can control all the 16,000 Veins of our Body and that is what was meant when we look at 16,000 Ranis.

This is what I could understand.

With Respects to Bua and yourself,
Anil
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दूसरा इ मेल "अतुल" बेटे का गाजिआबाद से आया है , उन्होंने लिखा है :-
++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++
सादर चरण स्पर्श राम राम

मैं प्रतिदिन प्रात: काल में, कम्प्यूटर खोलने के बाद सबसे पहले " महावीर बिनवउँ हनुमाना" पढ़ता हूँ. !8.30 के लगभग यह आ जाता है.! गजाधर फूफाजी का प्रसंग एवं परमादरणीय दादी के अंतिम क्षणों के बारे में पढ़कर विश्वास करना कठिन हो गया कि हमने भी इन महान संतों के साथ जीवन के कुछ क्षण बिताये हैं. उनके चरणों में अनेकानेक प्रणाम .

आजकल श्री कृष्ण जी का प्रसंग चल रहा था, जिसे आपने आज विश्राम दिया है. आपको पता ही है कि परमादरणीय अम्मा कृष्ण जी की पुजारिन थीं. वे प्रतिवर्ष श्री जगन्नाथ जी की पूजा करती थीं. उन्होंने एक बार बताया था कि, श्री कृष्ण भगवान ने अंतिम प्रवास श्री जगन्नाथ पुरी में किया था. वहां की मूर्तियों के हाथ और पैर नहीं हैं. मूर्तियों के हाथ और पैर लकड़ी के हैं - मानो भगवान यह सन्देश दे रहे हैं कि, चोरी करने आदि के बाद यह स्थिति हो जाती है !.

जब आपने श्री कृष्ण जी के प्रसंग का समापन गुरुजनों की शिक्षा द्वारा किया तो मन में आया कि अम्मा के द्वारा बतायी हुई श्री जगन्नाथ जी की बात आप को भी बता दूं. वेदों में भी कहा है - अवगुण अपने देखो, गुण दूसरों के देखो.

एक और बात. राम और कृष्ण इस पृथ्वी पर लीला करने अवतरित हुए थे. इसी कारण वे गर्भ में भी आये थे. उस समय वे मानव रूप में थे एवं उस काल की परस्थितियों के अनुसार विविध लीलायें करते थे. इसी कारण उन्होंनें श्री वाल्मीकि जी से अपने रहने का स्थान बताने के लिये विनती की थी - एवं श्री लक्ष्मण जी को शक्ती लगने के बाद विलाप किया था और जटायू को गोद में लेकर आँसू बहाये थे.

तभी अपने देश के महान संतों ने लिखा है -

"न जाने कौन से गुण पर दयानिधि रीझ जाते हैं.
न रोये वन गमन में श्री पिता की वेदनाओं पर,
उठाकर गीध को निज गोद में आँसू बहाते हैं....."
एवं
"प्रबल प्रेम के पाले पढ़कर प्रभु को नियम बदलते देखा.
जिनका ध्यान विरंचि शम्भु सनकादिक से न सम्भलते देखा,
उनको ग्वाल सखा मंडल में लेकर गेन्द उछलते देखा.

आदर सहित
अतुल
================================================.
अनिल और अतुल बेटों को ह्म उनके इन अनमोल विचारों के लिए हृदय से धन्यवाद देते हैं ! अपने अति व्यस्त दैनिक कार्यक्रम में समय निकाल कर आप दोनों ही ने जो संदेश भेजे , सराहनीय है !

एक सलाह है क़ि जब मेल द्वारा मेरा संदेश न मिले तो आप अप्रिल ०१ , २०१० से भेजे मेरे पिछले २४४ संदेश भी कभी कभी पढ़ें ! उनमे मैंने अपनी प्रेममयी अम्मा के विषय में बहुत कुछ लिखा है इसके अतिरिक्त "पितामह की तीर्थ यात्रा" प्रसंग में मैंने पुरी के श्री जगन्नाथपुरी मंदिर में , देव मूर्तियों के ठीक सामने अपने दादाजी के देह त्यागने की पूरी कहानी लिखी है !

क्रमश:
निवेदक :- व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
78, Clinton Road, Brookline,MA 02445, USA

रविवार, 19 दिसंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 2 4 5

हनुमत कृपा 
अनुभव 
(गतांक से आगे)


प्रियजन, अपनी अमृतवाणी में सद्गुरु स्वामी सत्यानन्द जी महाराज ने हम साधकों   को समझाया है कि हमें अन्य धर्म, आस्था ,मत -मतान्तर वालो से उलझ कर वाद विवाद में पड़ कर अपनी "नाम - साधना" का बहुमूल्य समय व्यर्थ नहीं गँवाना चाहिये ! गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए हमें अपना स्वधर्म पालन करते रहना चाहिए !


महाराज जी ने कहा है कि मत मतान्तरों क़ी कपोल कल्पनाओं का मायाजाल कृत्रिम है, झूठा है ! मानव का किसी के प्रति किसी प्रकार का ,मोह ,बैर, विरोध , निंदा, हठ और  क्रोध,सभी मिथ्या हैं और सर्वथा त्याज्य हैं ! 


  • मिथ्या  मन कल्पित मतजाल , मिथ्या है मोह कुमुद बेताल !!
  • मिथ्या मन मुखिया  मनोराज ,सच्चा है राम नाम जप काज,!!  
  • मिथ्या  है वाद  विवाद  विरोध , मिथ्या है  वैर निंदा हठ क्रोध  !!
  • मिथ्या  द्रोह दुर्गुण  दुःख खान ,  राम नाम  जप सत्य निधान !! 
अन्य धर्मावलम्बियों को नीचा दिखाकर उन्हें अपने "मत" से प्रभावित करने के उद्देश्य से  कट्टर-धर्म-पंथियों को अक्सर एक दूसरे से अंतहीन वाद-विवाद में जूझते देखा गया है ! झूठे अहंकार से प्रेरित होकर, वैर भाव से केवल विरोध प्रदर्शन के लिए  अन्य मत वालों को हठ से ,अपना मत स्वीकार करवाने के लिए प्रयास करना और असफल होने पर क्रोधित एवं दुखित होना अनुचित है इससे  अंतत: अशांति  ह़ी मिलती है,! साधक की 
जितनी शक्ति और जितना बहुमूल्य समय इस झूठ मूठ के शास्त्रार्थ  में बर्बाद होता है वह समय यदि ,गुरुजन के कहे अनुसार श्रद्धा भक्ति सहित अपने  इष्ट -भगवान की आराधना में लगाया जाता है तो परम पुरुष की "कृपा का अवतरण" उसी क्षण हो जाताहै  ! उसकी   कृपा की अनुभूति  ही "उनकी अनुभूति"  है , उनका "दर्शन" है !

प्रियजन ,  इस समग्र "सृष्टि  वृक्ष" का सृजन एवं विस्तार "केवल एक बीज" और  एक ही "मूल" से हुआ है ! यह "बीज" विभिन्न  विशेषणों से जाना जाता है जैसे ईश्वर ,परमात्मा , परमपुरुष इत्यादि  ! इस बीजरूपी परमात्मा के व्यक्तिवाचक नामों की सूची अनंत है , कहाँ तक गिनाएं ? हर धर्मावलम्बी "उन्हें" अपनी श्रद्धा एवं मान्यता के अनुसार अपनी भाषा में ,भाव सहित, अपने गुरुजनों की मन्त्रणानुसार चाहे जिस नाम से भी पुकारे उसके  "निर्मल मन " से उठी वह पुकार सुन कर "परम प्रभु" नंगे पाँव आकर साधक पर अपनी कृपा वृष्टि अवश्य ही करेंगे ! "वह" किसी को भी निराश नहीं करते !


अस्तु बेकार के वाद-विवाद में समय बर्बाद करने के बजाय ह्म गुरुजनों द्वारा निर्धारित अपनी साधना चालू रख पायें ,ऎसी कृपा ह्मारे प्यारे प्रभु ह्म सब पर सदा सर्वदा बनाये रखें आज हमारी यह़ी प्रार्थना है !            


निवेदक :- व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"

शनिवार, 18 दिसंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 2 4 4

हनुमत कृपा 
अनुभव 
(गतांक से आगे )

श्री कृष्ण विषयक शंकाओं के समाधान करने में ह्मने उन देवाधिदेव के गृहस्थ -जीवन की माधुर्य एवं ऐश्वर्य लीला के दर्शन ,श्रीमद भागवत पुराण के आधार पर किये ! चलिए अब ह्म श्री कृष्णा अवतार से पहले , त्रेता युग में अवतरित मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम पर आरोपित शिकायतों के विषय में बात करें !
  • (a) श्री राम ने "जनक सुता  जग जननि  जानकी "  की, जो करुणा निधान - श्रीराम को अतिशय प्रिय भी थीं , इतनी निर्मंमता  से अग्नि परीक्षा क्यों ली ?
  • उत्तर : मर्यादापुरुषोत्तम  भगवान श्रीराम ने मानव शरीर में अवतार लिया था पर थे तो वह सर्वशक्तिमान,सर्वज्ञ , सर्वगुण सम्पन्न :
              राम ब्रह्म चिन्मय अविनासी, सर्व रहित सब उरपुर वासी !! 
               जगत प्रकास्य प्रकासक रामू ,मायाधीश  ज्ञान गुण  धामू !!
  • प्रियजन, अपनी दैवीशक्तियों से श्री राम जानते थे कि सीता निर्दोष हैं और स्वयं दैवी सम्पदा से सुसज्जित माँ को भी यह ज्ञान था कि अग्नि देवता उन्हें कोई हानि नहीं पहुंचा सकते ! अस्तू दोनों की सहमति से अग्नि परीक्षा सम्पन्न हुई और जैसा सुनिश्चित था , सीता जी का एक बाल भी बांका नहीं हुआ ! दोनों को ही इस अग्नि परीक्षा में कोई  अनहोनी  नजर नहीं आई  ! 
  • (b) अयोध्या पति बन जाने के बाद राम राज्य स्थापित कर के श्री राम ने एक साधारण धोबी के उंगली उठाने पर अपनी धर्म परायण पतिव्रता पत्नी महारानी सीता को  बनबास दिया !क्या यह उचित है ?
  • उत्तर - मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम धर्म के विग्रह हैं ! राज-धर्म के मूल्य को गार्हस्थ जीवन के मूल्य से अधिक महत्व देकर और भावना से कर्त्तव्य को ऊंचा मान कर श्रीराम ने सीता का परित्याग किया था ! लेकिन उनके इस सांस्कृतिक आदर्श के इस निर्वहन से त्रेता युग क़ी भारतीय नारी के समक्ष यह प्रश्न मुंह बाये खड़ा हो गया कि " दुष्टों द्वारा  अपहरण होने के पश्चात  स्वतंत्र हो जाने पर  उस नारी का समाज में क्या स्थान है ?
  • संभवतः इसी प्रश्न का उत्तर देने के लिए द्वापर में श्री कृष्ण ने उदाहरण स्वरूप स्वयं ,इस प्रकार क़ी अपहृत तथा समाज एवं माता पिता तक से उपेक्षित ,एक दो नहीं ,सोलह हजार अबलाओं से विवाह करके , भविष्य के विशेषकर  कलि काल के अहंकारी, अभिमानी एवं स्त्री जाति के शोषक पुरुषों का मार्ग दर्शन किया कि वे भी ऎसी नारियों को अपनाने का पारमार्थिक कार्य करें !
  • (c)  श्री राम ने बाली को मार कर एक अति अनुचित कृत्य किया?  
  • उत्तर :- बाली श्री राम के मित्र सुग्रीव का बड़ा भाई था जिसने अपने छोटे भाई सुग्रीव के अधिकारों को छीन कर उसका निष्कासन कर दिया था ,जो अनुचित था !सुग्रीव सीताजी क़ी खोज में श्री राम की मदद कर रहा था ! राम द्वारा सुग्रीव जैसे मददगार मित्र की मदद करना क्या अनुचित कहा जाएगा ?   
  • और हाँ बलि को मार कर श्रीराम ने उसे स्वधाम दिया तथा मोक्ष प्रदान किया !श्री राम ने बाली की पत्नी तारा को सुन्दर उपदेश देकर उसकी पति वियोग की पीड़ा हर ली ! बाली के पुत्र अंगद को युवराज घोषित कर के उन्होंने  प्रमाणित कर दिया कि उन्होंने किसी के साथ कोई अन्याय नहीं किया !
प्रियजन इसके साथ हमारा शंका समाधानों का सिलसिला खतम होता है !

सच पूछिए तो हमे ऐसे जंजाल में फंसना  ही नहीं चाहिए ! हमें चाहिए क़ी ह्म अपनी संस्कृति और मान्यताओं को समाज के उन्नयन के योग्य बनाकर उसे दृढ़ता से अपनाये रहें ! हमे अपने निजी विश्वास पर अटल रह कर अपने गुरुजन के आदेशानुसार अपनी आध्यात्मिक साधना चालू रखनी है !गुरुजन के आशीर्वाद से इसी में अपना कल्याण है !
 
निवेदक:- व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"!