मंगलवार, 8 अक्तूबर 2013

"भक्ति योग"

 "नारद मुनि" का "प्रेम भक्ति"योग

सद्गुरु स्वामी सत्यानन्द जी महाराज ने कहा :

भक्ति करो भगवान से ,   मत मांगो फल दाम
तज कर फल की कामना भक्ति करो निष्काम
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प्यारे स्वजनों 
सितम्बर के दूसरे सप्ताह में मुझसे केवल 
इतना ही लिखवाकर मेरा "प्रेरणास्रोत" अंतरध्यान  हो गया !
 पूरे सितम्बर भर मैं उसके आगे कुछ भी न लिख पाया !
पहली अक्टूबर को जो लिखा वो आपने पढ़ ही लिया होगा !
देखें आज क्या डिक्टेट करते हैं , मेरे "वह" ?
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क्यूँ बार बार मैं आपको अपनी परवशता से परिचित करवाने की चेष्टा करता रहता  हूँ , नहीं जानता ! कदाचित इसलिए कि मैं स्वयम अपने आपको याद दिलाता रहूँ कि परवशता ही मेरे जीवन का परम सत्य है ! 

प्रियजन, अब् तो मुझे यह विश्वास हो गया है कि मेरी यह धारणा समग्र मानवता के लिए सत्य है ,आपके लिए भी ! 

मुझे तो ऐसा लगता है कि शायद कुछ ऎसी ही अंतरात्मा को शीतलता प्रदान करती - "परवशता" का आनंद लूटकर ,'नंदनंदन कृष्ण' के ' प्रेमी भक्त' - "सूरदास" ने कहा है ,हमे नन्दनंदन मोल लियो !!

सब कोउ कहत गुलाम श्याम को ,सुनत सिरात हियो !
सूरदास हरि जू को चेरो ,जूठन खाय जियो ! 
हमे नन्दनंदन मोल लियो !!


मैं श्रद्धेय भाईजी श्री.हनुमान प्रसाद पोदार  के इस कथन से भी पूर्णतः सहमत हूँ  कि हम-आप सबही मात्र "यंत्र" हैं और हमे चला रहां है वह सर्वव्यापी सर्वज्ञ  सर्वशक्तिमान कुशल "यंत्री" - परमपिता परमात्मा !  
प्रियवर ! भाईजी के उस "यंत्री" को ही आपका यह तुच्छ स्वजन "भोला" "मदारी" कह कर संबोधित करता है !

एकबार फिर दुहरा लूँ अपनी परवशता का वह परम सत्य :


                  लिखता हूँ केवल उतना ही, जो, "वो"  मुझसे लिखवाते हैं ! 
करता हूँ केवल वही काम ,जो ,"वो" मुझसे करवाते हैं !!
मेरा है कुछ भी नहीं यहाँ , सब "उनकी" कारस्तानी है !!

मुझको दोषी  मत कहो स्वजन,  है सारा दोष "मदारी" का !,  
 "भोला बन्दर"-  मैं, क्या जानूँ अंतर मयका ससुरारी का !!
रस्सी थामें मेरी ,मुझसे "वो" करवाता मनमानी है !!
सब "उनकी" कारस्तानी है !!
"भोला"

(अब् तो आप जान गये कि इस "भोले" बन्दर का चतुर मदारी जो इसे-
 डुगडुगी बजाकर  जन्म जन्मान्तर से नचा रहा है, कौन है  )

प्रियजन , "मनमानी" नहीं तो और क्या है ये उस "मदारी" की ? 

अब् इसी आलेख को देखिये , अनेक दिनों की खामोशी के बाद कुछ दिनों पूर्व 'उन्होंने' - जी हाँ 'उन्ही' ने, जिन्हें मैं अपना मदारी कहता हूँ , मुझसे "नटखट नारद" की शरारतों में निहित उन गंभीर सूत्रों को उजागर करने की आदेशात्मक प्रेरणा दी जिनके द्वारा  नारदजी ने कदाचित इस विश्व में सर्व प्रथम समग्र मानवता के कल्याण हेतु संगीतमयी   "प्रेम भक्ति" की सरलतम साधना के ८४ सूत्रों को उजागर किया था !  

देवरिषि , कब हुए ?  अथवा कब कब इस धरती पर अवतरित हुए ? और उन्होंने कब और कैसे "प्रेम  भक्ति" के उन ८४ सूत्रों की खोज की ? प्रियजन  ,मैं इस विषय में कुछ भी  नहीं जानता ! इस विषय पर या तो कोई त्रिकालयज्ञ महापुरुष अथवा स्वयम श्रीमदभागवत के रचयिता व्यास जी या कोई गहन शोधकर्ता प्रकाश डाल सकता है ! यहाँ हमे इनमे से कोई एक भी उपलब्ध नहीं है ! हमे तो अपने उन -सर्वशक्तिमान सर्वज्ञ इष्ट   जी  हाँ उन्ही चतुर मदारीजी का भरोसा है .यदि "वो"आगे कुछ  सुझाएंगे तो आप को अवश्य बता दूँगा! 

सब उनकी ही मायाजनक कारस्तानी है  और यही सत्य भी है !

सो 'उनकी' कृपा से कलम रुक गयी . और रुकी तो रुक ही गयी !

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अक्टूबर में धारा बदली  ! बजरंगी महावीर ने जोर मारा ! याद दिलाये अपने सब उपकार उन्होंने ! कब कब , कैसे कैसे कष्टों से उन्होंने अपने इस भोले बंदर और उसके अपनों की रक्षा की ! [ मैंने "उनकी" प्रेरणा के अनुसार 'अपनी आत्म कथा में जहां तहाँ उनका वर्णन भी किया है ] 

इस सन्दर्भ में याद आई , लगभग १० वर्ष पुरानी एक बात !


२००३ की अक्टूबर की पहली तारीख को हमारे परमप्रिय .श्रद्धेय सद्गुरु-समान आदर्श ग्रहस्थ संत बाबू (माननीय श्री शिवदयाल जी) "राम धाम" गये थे !  
२००४ के प्रारंभ में हम पिट्सबर्ग में थे !  हा तो वहीं हमारे पास सिंगापुर से बाबू के प्यारे छोटे बेटे अनिल का फोन आया ! 

श्रीराम परिवार के सदस्य आपसी बातचीत में परचर्चा और परछिद्रानुवेशन नहीं करते ! इधर उधर की बातें न करके हमारे ये स्वजन अधिकतर धर्म संबंधी बातें ही करते हैं ! भजन गाये और सुने जाते हैं ! भजन कीर्तन की म्यूजिकल अन्ताक्षरी होती है , संतों की वाणी पर विचार विमर्श होता है !  

हां मैं कह रहा था कि पिट्सबर्ग में सिंगापुर के अनिल बेटे का फोन आया ! 
कुछ दिवस पूर्व ही पूज्यनीय बाबू का निधन हुआ था ! अभी स्वजनों की आँखें गीली ही थीं ! कदाचित उस दिन रविवार था और अनिल बेटा अपने रविवासरी सत्संग से लौटा था ! सत्संग में उसे याद आया  कि कुछ वर्ष पूर्व पूज्यनीय बाबू उसके साथ उसी सत्संग में शामिल हुए थे ! उस सत्संग में किसी साधक ने हनुमान जी का एक अति सुंदर भजन गाया था !

उस भजन में हनुमानजी को संबोधित करके कहा गया था कि ' हनुमानजी  ,आपके तो आगे आगे ,पीछे पीछे , बांये दायें , ऊपर नीचे ; आपके शरीर के हर अंग में , आपके रोम रोम में ,  आपके अंतर्मन में एक और केवल एक आपके इष्ट "भगवान राम" ही बिराजमान है ! धन्य है आपकी अपने "राम" के प्रति यह प्रगाढ़ "प्रेममयी भक्ति"

भगवान राम के प्रति हनुमानजी की अतिशय प्रीति और उनका सम्पूर्ण समर्पण झलकाता वह भजन दिवंगत बाबू को बहुत अच्छा लगा था !फोन  
पर अनिल  ने वह भजन हमे सुनाया ! हमे भी वह भजन अति हृदयग्राही लगा ! यहाँ यू एस ए में हम सब- उनकी बुआ कृष्णा जी और हमारी बेटी श्री देवी , हम सब  रो पड़े ! याद आईं श्रद्धेय बाबू की  निष्काम 'राम भक्ति ', हनुमान जी के प्रति उनकी असीम श्रद्धा तथा उनका अटूट विश्वास !

प्रेरणास्रोत "मेरे मदारी" ने बाबू की उस प्रीति को मेरी निम्नांकित रचना में
अंकित करवाया - मैंने लिखा और गाया तथा श्री राम शरणं दिल्ली ने उस भजन के केसेट तथा सी डी बनवाए  !

हनुमान जी के समान ही हमारे बाबू भी भगवान श्री राम जी के अनन्य भक्त थे ! वह अपने इष्ट श्रीरामजी  से 'हेतु रहित अनुराग एवं निःस्वार्थ; निष्काम प्रेम करते थे ! वह अपने प्रेमास्पद "श्री राम" के श्री चरणों में पूर्णतः समर्पित थे ! उनके एकमात्र अवलम्ब थे " राम " -

राम हि राम बस राम हि राम और नाहीं काहू सों काम 

पूज्य.बाबू को अपने "राम" के अलावा किसी और से कुछ लेना देना नहीं था]  लीजिए आप भी सुन लीजिए 


राम ही राम बस राम हि राम -और नाहि काहू सों काम 

तन में राम तेरे मन में राम , मुख में राम वचन में राम
जब बोले तब राम हि राम , राम हि राम बस राम हि राम 

जागत सोवत आठहु याम, नैन लखें शोंहा को धाम 
ज्योति स्वरूप राम को नाम , राम हि राम बस राम हि राम 





कीर्तन भजन मनन मे राम ,ध्यान जाप सिमरन में राम .
मन के अधिष्ठान में राम , राम हि राम बस राम हि राम

सब दिन रात सुबह अरु शाम ,बिहरे मनमधुबन में राम  
परमानंद शान्ति सुखधाम ,  राम हि राम बस राम हि राम
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शब्दकार स्वरकार और गायक -
उस चतुर मदारी का नटखट बंदर
 "भोला"  
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प्रियजन , देख रहे हैं आप कि मेरे चतुर मदारी ने मुझे कहाँ  कहाँ घुमाया , किस किस घाट का पानी पिलाया ?  परन्तु अन्ततोगत्वा उसने अपने इस भोले बंदर को उसके गंतव्य  तक पहुचा ही दिया !

 घूम फिर कर हम नटखट नारद के भक्ति सूत्रों तक पहुच  गये जिनमे  भक्ति की व्याख्या करते हुए नारद जी ने कहा है :  

अथातो भक्तिम व्याख्यास्याम 
सा त्वसमीन परम प्रेम रूपा

 [विस्तार से अगले आलेख में ]
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                           निवेदक :   व्ही . एन . श्रीवास्तव "भोला" 
सहयोग : श्रीमती कृष्णा :भोला" श्रीवास्तव 
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1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

करता हूँ केवल वही काम ,जो ,"वो" मुझसे करवाते हैं !!
मेरा है कुछ भी नहीं यहाँ , सब "उनकी" कारस्तानी है !!
sahi kaha aapne vaise bhi ''kam hoga vahi jise chahoge raam''vijaydashmi kee aapko parivar sahit shubhkamanyen